आत्महत्या के बढ़ते मामले: क्या विभागीय राजनीति जिम्मेदार है?
आत्महत्या के 80% मामले विभागीय राजनीति और आंतरिक राजनीति के कारण होते हैं। जानिए कैसे यह गुटबाजी और मानसिक उत्पीड़न कार्मिकों को आत्महत्या की ओर धकेल रहा है और क्या हो सकता है इसका समाधान?

क्या विभागीय राजनीति कार्मिकों को आत्महत्या की ओर धकेल रही है?
सरकारी विभागों, विशेषकर पुलिस और अर्धसैनिक बलों में, आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस बढ़ती समस्या का एक बड़ा कारण विभागीय राजनीति और आंतरिक गुटबाजी मानी जा रही है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 80% आत्महत्याएं अधिकारियों की मिलीभगत, मानसिक उत्पीड़न, अनुचित ड्यूटी और गुटबाजी की वजह से हो रही हैं, जबकि 20% मामले पारिवारिक समस्याओं से जुड़े होते हैं।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वाकई विभागीय राजनीति और अधिकारियों की लापरवाही ही इन आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार है?
कैसे विभागीय राजनीति कार्मिकों को मानसिक रूप से कमजोर बना रही है?
1. कार्मिकों को टारगेट करना और गुटबाजी
कार्यालयों और बलों में ड्यूटी RTR, कंपनी RTERR, CHhmM, ASsI(AAA), SIii(AAA), SSMM जैसे अधिकारी अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल करते हैं। ये लोग गुटबाजी करके एक विशेष कर्मचारी को टार्गेट करते हैं, उसकी निंदा करते हैं और उसे मानसिक तनाव में डालते हैं। कई बार अधिकारियों तक झूठी बातें पहुंचाई जाती हैं ताकि किसी को कमजोर किया जा सके।
2. अनुचित ड्यूटी और प्रताड़ना
- मानसिक और शारीरिक तनाव बढ़ाने के लिए कार्मिकों को कठिन ड्यूटी में लगातार तैनात किया जाता है।
- यदि कोई जवान घर के पास ड्यूटी चाहता है तो उसे दूरस्थ स्थानों पर भेज दिया जाता है।
- यदि जवान का परिवार साथ रहता है, तो उसे बार-बार ऐसी ड्यूटी दी जाती है कि वह परिवार से दूर रहे।
- छुट्टियां मंजूर नहीं की जातीं, जिससे वे अपने परिवार से नहीं मिल पाते और अवसाद में चले जाते हैं।
3. अधिकारियों का गलत उपयोग
- जवानों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है।
- उनसे व्यक्तिगत काम करवाए जाते हैं, जैसे कि अधिकारियों के घर का काम, उनके परिवार की सेवा, और अनधिकृत ड्यूटी।
- छुट्टियों को निरस्त कर दिया जाता है, जिससे उनका ट्रेन और फ्लाइट का आरक्षण बेकार चला जाता है।
4. मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न
- वरिष्ठ अधिकारी छोटे-छोटे मुद्दों पर जवानों को बेइज्जत करते हैं।
- उनके खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज करवाई जाती हैं।
- किसी जवान को कंपनी या प्लाटून में बदनाम करने की साजिश रची जाती है।
मानसिक तनाव का दुष्प्रभाव और आत्महत्या की ओर बढ़ता कदम
जवान मानसिक उत्पीड़न को झेलते-झेलते एक समय पर आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं। वे मानसिक अवसाद, अकेलापन और असहाय महसूस करते हैं, जिससे वे या तो खुद को नुकसान पहुंचाते हैं या फिर किसी और पर गुस्सा निकालते हैं।
लेकिन क्या इसका कोई समाधान नहीं है?
समाधान: आत्महत्या से बचने के लिए जवान क्या कर सकते हैं?
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उच्च अधिकारियों से शिकायत करें
- जो भी जवान उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं, वे COY COMMANDER, ADJUTANT, 2 I/C, COMMANDANT, DIG, IG, DG तक अपनी शिकायत पहुंचा सकते हैं।
- हर विभाग में शिकायत के लिए हेल्पलाइन नंबर होते हैं, उन पर कॉल करें।
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लिखित शिकायत दर्ज करें
- मौखिक शिकायतों के बजाय लिखित शिकायत करें, जिससे अधिकारियों पर दबाव बने।
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कानूनी कार्रवाई करें
- यदि बार-बार शिकायत के बावजूद कोई समाधान नहीं मिल रहा है, तो सीधे घर जाएं और FIR दर्ज करें।
- कोर्ट केस दर्ज करवाकर अपने अधिकारों की रक्षा करें।
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आत्महत्या का विचार छोड़ें
- जीवन अमूल्य है, इसलिए आत्महत्या का रास्ता न अपनाएं।
- खुद को मजबूत बनाएं और सही तरीके से न्याय की मांग करें।
निष्कर्ष: जवानों की मानसिक स्थिति को समझने की जरूरत
सरकारी विभागों में गुटबाजी, राजनीति और मानसिक उत्पीड़न के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। यह गंभीर समस्या है, जिसके समाधान के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
जवानों को यह समझना चाहिए कि हर अधिकारी भ्रष्ट नहीं होता, कुछ न कुछ लोग ऐसे जरूर होते हैं जो न्याय दिला सकते हैं। इसलिए शिकायत करें, न्याय की मांग करें, लेकिन आत्महत्या जैसा कदम न उठाएं।
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