क्या पश्चिम बंगाल में मेडिकल का सपना सच होने जा रहा है? फायदे और लुटते अवसरों का सच!

Discover the untapped potential of medical education and healthcare in West Bengal. Explore benefits, challenges, and future opportunities in the state's medical sector. Stay updated with expert insights and government initiatives.

Aug 18, 2025 - 17:41
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क्या पश्चिम बंगाल में मेडिकल का सपना सच होने जा रहा है? फायदे और लुटते अवसरों का सच!
Modern medical college campus in Kolkata, West Bengal with students in white coats walking under a tree-lined pathway

"क्या पश्चिम बंगाल मेडिकल में एक नई क्रांति की ओर बढ़ रहा है?"

कोलकाता, 5 अप्रैल 2025 — क्या आपने कभी सोचा है कि भारत के पूर्वी हिस्से में बसे इस सांस्कृतिक राज्य में, जहां कलम और कविता की गूंज रहती है, आज एक नई तकनीकी और चिकित्सा क्रांति के संकेत दिख रहे हैं? पश्चिम बंगाल में मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में एक ऐसा मोड़ आ रहा है, जो न सिर्फ राज्य के युवाओं के लिए नए द्वार खोल रहा है, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल भी बन सकता है।

लेकिन सवाल ये है कि — क्या इस तरक्की के बावजूद अभी भी बहुत कुछ लुट रहा है? क्या बंगाल के युवा अपने प्रतिभा के बल पर एमबीबीएस की सीट पकड़ पा रहे हैं? या फिर बुरी तरह से फंसे हुए हैं नीट के प्रतिस्पर्धा के जाल में?

आज हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ऐसी खास रिपोर्ट, जो न सिर्फ आपको पश्चिम बंगाल मेडिकल के फायदे और लुटते अवसरों के बारे में बताएगी, बल्कि आपके दिमाग में उठ रहे सवालों के जवाब भी देगी।


पश्चिम बंगाल में मेडिकल शिक्षा: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पश्चिम बंगाल भारत में मेडिकल शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र रहा है। कोलकाता मेडिकल कॉलेज, जो 1835 में स्थापित हुआ था, एशिया का पहला मेडिकल कॉलेज है। इसके बाद राजकृष्णा घोष (आर.जी. कार), मधुसूदन मुखर्जी, महामानव बिधान चंद्र रॉय जैसे नामों ने चिकित्सा के क्षेत्र में बंगाल को गौरवान्वित किया।

लेकिन आज के समय में, जब पूरा देश नीट (NEET) के दबाव में है, तो क्या बंगाल अपने गौरव को बरकरार रख पा रहा है?


फायदे: पश्चिम बंगाल में मेडिकल के 5 बड़े लाभ

1. सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

पश्चिम बंगाल में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की फीस देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहद कम है। एक छात्र को सालाना मात्र ₹10,000 से ₹25,000 के बीच खर्च करना पड़ता है। वहीं, प्राइवेट कॉलेजों में यह राशि ₹12 लाख तक जा सकती है।

“मैंने आर.जी. कार में एडमिशन लिया है। फीस इतनी कम है कि मेरे पिता, जो एक स्कूल टीचर हैं, आसानी से भर सकते हैं।”
— अर्पिता रॉय, NEET 2024 क्वालीफायर

2. अच्छी लैब्स और क्लिनिकल एक्सपोजर

कोलकाता के प्रमुख अस्पताल जैसे S.S.K.M. Hospital, R.G. Kar, N.R.S. Hospital में हर दिन सैकड़ों मरीज आते हैं। इससे छात्रों को असली दुनिया के अनुभव मिलते हैं।

एक छात्र ने बताया — “हमें पहले साल से ही वार्ड राउंड्स में शामिल होने का मौका मिलता है। यह थ्योरी से बेहतर है।”

3. बढ़ती सीटें: 2025 तक 5000+ एमबीबीएस सीटें

पश्चिम बंगाल सरकार ने घोषणा की है कि 2025 तक राज्य में 5000 से अधिक एमबीबीएस सीटें होंगी। नई मेडिकल कॉलेजें मालदा, उत्तर दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी और पश्चिम मेदिनीपुर में खोली जा रही हैं।

यह एक बड़ा कदम है, जो ग्रामीण छात्रों के लिए नई उम्मीद जगा रहा है।

4. स्कॉलरशिप और फीस वेवर

राज्य सरकार अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के छात्रों के लिए 100% फीस वेवर की सुविधा देती है। साथ ही, मुख्यमंत्री छात्रवृत्ति योजना के तहत ₹20,000 प्रति वर्ष तक की आर्थिक सहायता भी दी जाती है।

5. रोजगार के अवसर: सरकारी नौकरी का दरवाजा

पश्चिम बंगाल में हर साल सैकड़ों डॉक्टरों की भर्ती होती है। WB Health Recruitment के माध्यम से ग्रामीण अस्पतालों, PHC और जिला अस्पतालों में नौकरियां मिलती हैं।

“मैंने 2023 में एमबीबीएस किया और 6 महीने के अंदर ही सरकारी नौकरी पाई। अब मैं मुर्शिदाबाद के एक ब्लॉक में तैनात हूं।”
— डॉ. सुमन घोष, सरकारी चिकित्सक


लुटते अवसर: 4 बड़ी चुनौतियां जो बंगाल को पीछे रख रही हैं

1. नीट के कारण छात्रों पर दबाव

पश्चिम बंगाल सरकार ने नीट के खिलाफ लंबा संघर्ष किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य को भी इस परीक्षा को मान्यता देनी पड़ी।

इसके कारण, राज्य के हजारों छात्र नीट के कारण फेल हो जाते हैं, भले ही वे बोर्ड परीक्षा में 90% से अधिक अंक लाए हों।

“मैंने 94% अंक लिए, लेकिन नीट में 480 अंक आए। अब मुझे प्राइवेट कॉलेज में जाना पड़ेगा या फिर रिपीट करना पड़ेगा।”
— राहुल दास, जलपाईगुड़ी

2. अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर कुछ नए कॉलेजों में

कुछ नए मेडिकल कॉलेजों में लैब्स, लाइब्रेरी और आवास की कमी बनी हुई है। MCI (अब NMC) ने कई संस्थानों को अनुमति देने से इनकार कर दिया है क्योंकि वे मानकों पर खरे नहीं उतरते।

3. डॉक्टर्स का पलायन

बंगाल के कई युवा डॉक्टर्स दिल्ली, मुंबई या विदेशों में नौकरी के लिए चले जाते हैं। कम वेतन, अत्यधिक काम और सुरक्षा के डर के कारण ग्रामीण इलाकों में डॉक्टर्स टिक नहीं पाते।

4. राजनीति और प्रशासनिक देरी

कई परियोजनाएं राजनीतिक लड़ाई और भ्रष्टाचार के कारण धीमी गति से चलती हैं। नए मेडिकल कॉलेज खुलने में सालों लग जाते हैं।


सरकार क्या कर रही है? 2025 के लिए बड़े ऐलान

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2024 के बजट में स्वास्थ्य और शिक्षा को प्राथमिकता दी है।

  • ₹500 करोड़ की घोषणा नए मेडिकल कॉलेजों के विकास के लिए।
  • AIIMS जैसे संस्थानों के लिए तीन नए प्रस्ताव भेजे केंद्र सरकार को।
  • "डॉक्टर फॉर बंगाल" अभियान शुरू किया गया है, जिसके तहत ग्रामीण छात्रों को नीट के लिए फ्री कोचिंग दी जा रही है।

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