अर्धसैनिक बल की असलियत: कब मिलेगा न्याय?
अर्धसैनिक बलों की कठिन ड्यूटी और उनके अधिकारों की अनदेखी पर विशेष रिपोर्ट। जानें क्यों ये सैनिक सरकार से उचित मान्यता और सुविधाओं की मांग कर रहे हैं।

अर्धसैनिक बल: संघर्ष और बलिदान की गाथा
अर्धसैनिक बल (CAPF) देश की सुरक्षा का महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, लेकिन उनकी परिस्थितियाँ सेना और सिविल कर्मचारियों से बिल्कुल अलग और कठिन हैं। 365 दिन के कार्यकाल में जवान केवल 80 दिन अपने परिवार के साथ बिता पाते हैं, जबकि सिविल कर्मचारी 170 दिन की छुट्टियाँ प्राप्त करते हैं।
जवानों की ड्यूटी का स्वरूप
अर्धसैनिक बल के जवान दिन में 15-18 घंटे की ड्यूटी करते हैं, और 24 घंटे की जिम्मेदारी उनके कंधों पर रहती है। कश्मीर की दुर्गम पहाड़ियों पर 2-3 साल तक तैनाती हो, या सीमा पर रातभर जागकर सुरक्षा देना—ये कठिन ड्यूटी उनकी दिनचर्या बन चुकी है।
सेना और अर्धसैनिक बल के बीच तुलना
अर्धसैनिक बल और सेना की ड्यूटी में भले ही समानता हो, लेकिन सुविधाओं में बहुत बड़ा अंतर है।
- सेना को मिलती हैं विशेष सुविधाएँ:
- सेना को ARMY SERVICE PAY और पेंशन दी जाती है।
- दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती का समय 18 महीने।
- अर्धसैनिक बलों की अनदेखी:
- पैरामिलिट्री सर्विस पे और पेंशन सुविधा नहीं दी जाती।
- दुर्गम इलाकों में 2-3 साल तक ड्यूटी करनी पड़ती है।
अर्धसैनिक बलों की मांगें
- पैरामिलिट्री सर्विस पे लागू हो।
- पेंशन और एक्स-सर्विसमैन का दर्जा मिले।
- कैंटीन और अन्य सुविधाएँ दी जाएँ।
- शनिवार और रविवार की ड्यूटी के लिए मुआवजा मिले।
सरकार कब सुनेगी इनकी आवाज़?
जवानों का कहना है कि "हमारे बलिदान और मेहनत को कब मान्यता मिलेगी? सरकार हमारी मजबूरियों का लाभ उठा रही है क्योंकि हम हड़ताल नहीं कर सकते।"
निष्कर्ष:
अर्धसैनिक बल देश की सुरक्षा का आधार हैं। इनके बलिदान को पहचानते हुए, सरकार को जल्द ही इनके अधिकार सुनिश्चित करने होंगे। पैरामिलिट्री जवान केवल न्याय और समान अधिकार की माँग कर रहे हैं।
अंतिम संदेश:
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