बांग्लादेश- संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग:अंतरिम सरकार के अटॉर्नी जनरल ने रखा प्रस्ताव; मुजीबुर्रहमान का राष्ट्रपिता का दर्जा हटाने के लिए कहा

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज़्ज़मां ने ढाका हाईकोर्ट में एक बड़ा संवैधानिक प्रस्ताव पेश किया है, जिसमें उन्होंने 'सेक्युलर' और 'सोशलिज़्म' जैसे महत्वपूर्ण शब्दों को हटाने की मांग की है। उनका कहना है कि ये शब्द बांग्लादेश की सांस्कृतिक और धार्मिक वास्तविकताओं से मेल नहीं खाते, विशेष रूप से जब देश की अधिकांश जनसंख्या मुस्लिम है।
इस प्रस्ताव की पराकाष्ठा में, उन्होंने संविधान के आर्टिकल 7A को हटाने की भी अपील की है, जो गैर-संवैधानिक सत्ता परिवर्तन के लिए मौत की सजा का प्रावधान करता है। यही नहीं, उन्होंने शेख मुजीबुर्रहमान को 'राष्ट्रपिता' का दर्जा देने वाले प्रावधान को समाप्त करने की भी मांग की है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश की स्थापना में एक प्रमुख व्यक्तित्व रहे हैं, और उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में मान्यता देने का निर्णय 2011 में शेख हसीना की सरकार द्वारा किए गए 15वें संविधान संशोधन का हिस्सा था।
सुनवाई के दौरान, कई वकीलों ने अपने विचार प्रस्तुत किए, जिनमें से कुछ ने अटॉर्नी जनरल के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि अन्य ने इसका जोरदार विरोध किया। समर्थन करने वाले वकीलों का तर्क था कि बांग्लादेश का संविधान अब लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं और धार्मिक विश्वासों का प्रतिनिधित्व नहीं करता।
संविधान में इन शब्दों को हटाने के लिए एक संविधान संशोधन आयोग का गठन किया गया है, जो इस मुद्दे पर गहन विचार करेगा और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा। यह मामला बांग्लादेश की राजनीतिक और सामाजिक धारा में एक महत्वपूर्ण मोड़ को इंगित करता है, जहां संविधान और धार्मिक विश्वासों के बीच संतुलन बनाने की चुनौती और भी बड़ी हो गई है। इस प्रस्ताव की संभावित स्वीकृति या अस्वीकृति बांग्लादेश के भविष्य के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकती है।
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