लालन उत्सव: क्या संगीत पर लगेगा प्रतिबंध?
बांग्लादेश में मौलवादियों के दबाव में इस साल लालन स्मरणोत्सव रद्द कर दिया गया। क्या संगीत और संस्कृति पर बढ़ता प्रतिबंध एक नई चुनौती है? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

क्या बांग्लादेश में संगीत अब हराम हो गया?
मौलवाद के आगे झुका बांग्लादेश, लालन उत्सव रद्द
बांग्लादेश में धार्मिक कट्टरपंथ की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि अब संगीत और संस्कृति भी इसकी चपेट में आ गई है। हर साल होने वाला प्रसिद्ध लालन स्मरणोत्सव इस बार हिफाजते इस्लाम जैसे मौलवादी संगठनों के विरोध के चलते रद्द कर दिया गया।
इस फैसले से पूरे बांग्लादेश में संगीत प्रेमियों और संस्कृति को बचाने वालों के बीच आक्रोश है। क्या अब गीत-संगीत भी धार्मिक कट्टरता की भेंट चढ़ जाएगा? क्या बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में मौलवादी ताकतें संस्कृति को मिटाने की साजिश रच रही हैं? आइए इस पूरे विवाद को विस्तार से समझते हैं।
लालन कौन थे और क्यों महत्वपूर्ण हैं?
लालन फकीर (1774-1890) बंगाल के एक महान मनीषी, संत और गायक थे, जिन्होंने समाज में भेदभाव, कट्टरता और धार्मिक पाखंड के खिलाफ अपने गीतों के माध्यम से आवाज उठाई थी। उनके गीतों में सामाजिक समानता, प्रेम और भाईचारे का संदेश मिलता है।
लेकिन अब, लालन की धरती पर ही उनके विचारों को दबाने की कोशिश हो रही है।
मौलवादियों का तर्क: "इस्लाम में संगीत हराम!"
बांग्लादेश में हिफाजते इस्लाम और अन्य कट्टरपंथी संगठनों का कहना है कि इस्लाम में संगीत हराम है। इसी तर्क को आधार बनाकर उन्होंने टांगाइल के मধुपुर में होने वाले लालन उत्सव को रद्द करवाया।
उनका विरोध क्यों?
- लालन के भजन और गीत धार्मिक कट्टरता को नकारते हैं।
- उनके अनुयायी धर्म और जाति से ऊपर उठकर मानवता की बात करते हैं।
- उत्सव में गाने-बजाने और नृत्य का आयोजन होता है, जो मौलवादियों को स्वीकार नहीं।
क्या पश्चिम बंगाल में भी बढ़ रही है यह कट्टरता?
बांग्लादेश में लालन उत्सव को बंद करवाने के बाद सवाल उठता है - क्या पश्चिम बंगाल में भी यही होने वाला है?
ममता बनर्जी की नीतियों पर सवाल
पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी के नेतृत्व में कई मौलवादी संगठन तेजी से मजबूत हुए हैं। जहां मुस्लिम आबादी अधिक है, वहां धीरे-धीरे हिंदू संस्कृति और परंपराओं को दबाने की कोशिश की जा रही है।
क्या यह बांग्लादेश का "ट्रायल रन" है?
- दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा पर नियमों की सख्ती
- स्कूलों में रवींद्र संगीत को कम किया जा रहा है
- कई स्थानों पर मूर्ति विसर्जन के खिलाफ फतवे
- हिंदू धार्मिक आयोजनों पर स्थानीय प्रशासन की कड़ी निगरानी
क्या भारत में भी संगीत और कला संकट में है?
बांग्लादेश की स्थिति देखकर यह सवाल उठता है कि क्या भारत में भी संगीत, नृत्य और कला पर खतरा मंडरा रहा है?
भारत में भी कुछ कट्टरपंथी संगठनों द्वारा बॉलीवुड फिल्मों, नाटकों, किताबों और कलाकारों पर हमले किए जा रहे हैं।
- तांडव वेब सीरीज विवाद (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप)
- लक्ष्मी बॉम्ब फिल्म विवाद (नाम बदलकर लक्ष्मी करना पड़ा)
- मुनव्वर फारूकी की गिरफ्तारी (स्टैंडअप कॉमेडी पर विवाद)
क्या भारत को सतर्क होने की जरूरत है?
बांग्लादेश में आज जो हो रहा है, वह संकेत देता है कि भारत में भी अगर सही कदम नहीं उठाए गए, तो कला, संगीत और साहित्य संकट में आ सकते हैं।
क्या अब गाने भी बंद होंगे?
क्या हेमंत कुमार, किशोर कुमार और रवींद्र संगीत भी हराम हो जाएगा?
आज हमें यह सोचने की जरूरत है कि हमारी संस्कृति और परंपराओं को कट्टरता से बचाने के लिए क्या कदम उठाने होंगे।
जनता क्या कर सकती है?
- संगीत और कला को बचाने के लिए आवाज उठाएं।
- कट्टरपंथ के खिलाफ सामाजिक जागरूकता फैलाएं।
- सरकार और प्रशासन से मांग करें कि वे ऐसे आयोजनों को सुरक्षा दें।
- सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी राय रखें।
निष्कर्ष: क्या हमारा भविष्य भी ऐसा होगा?
आज बांग्लादेश में लालन उत्सव बंद हुआ है, कल भारत में भी ऐसा हो सकता है।
अगर समाज चुप रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे गांव-गली में भी संगीत पर पाबंदी लग जाएगी।
आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं?
क्या कला और संगीत को बचाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए?
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