क्या सभी बच्चों को एक जैसा शिक्षा देना सही है? शिक्षण प्रणाली पर सवाल!
क्या सभी बच्चों को एक जैसे मानकर शिक्षा देना सही है? बच्चों की प्राकृतिक क्षमताओं के अनुसार शिक्षा क्यों नहीं दी जाती? जानें इस विषय पर विस्तृत चर्चा।

क्या सभी बच्चों के लिए एक जैसी शिक्षा सही है?
जंगल के राजा बाघ मियाँ ने एक ऐलान किया – "कोई बच्चा अनपढ़ नहीं रहेगा। सभी को समान शिक्षा मिलेगी।" इस घोषणा के बाद जंगल में सभी जानवरों के बच्चों को स्कूल भेजने का आदेश दिया गया।
हाथी, बंदर, ऊँट, मछली, कछुआ, और जिराफ – सभी अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे। बाघ ने वादा किया कि पढ़ाई खत्म होने पर सभी को प्रमाणपत्र मिलेगा। शुरू हुआ एक बड़ा अभियान, जिसे नाम दिया गया 'सर्व शिक्षा अभियान'।
पहला टेस्ट और नतीजों का तमाशा
कुछ ही दिनों बाद स्कूल में पहला टेस्ट लिया गया। सब बच्चे अपनी-अपनी कक्षा में परीक्षा देने बैठे। लेकिन जैसे ही नतीजे आए, हाथी का बच्चा गुस्से में घर लौटा।
हाथी ने पूछा, "किस विषय में फेल हुआ?"
शिक्षक ने बताया, "गाछे चढ़ना (पेड़ पर चढ़ना) के विषय में।"
हाथी परेशान हो गया। उसने सोचा, "इतना बड़ा शरीर और पेड़ पर चढ़ नहीं पाया? यह तो मेरे परिवार की इज्जत का सवाल है।"
क्या सभी को एक जैसी शिक्षा दी जानी चाहिए?
जंगल में अब अजीब माहौल था। हर जानवर अपने बच्चों को पेड़ पर चढ़ने की कला सिखाने में जुटा था।
- हाथी का बच्चा दिन-रात पेड़ पर चढ़ने का अभ्यास करता।
- मछली का बच्चा पानी में रहते हुए भी पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करता।
- ऊँट और जिराफ अपने लंबे शरीर के बावजूद संघर्ष करते।
लेकिन नतीजा?
बंदर का बच्चा हर बार टॉपर होता। पेड़ों पर चढ़ना तो उसकी प्राकृतिक क्षमता थी।
फेलियर बच्चों पर अभिभावकों का गुस्सा
जब साल का आखिरी रिजल्ट आया, तो हाथी, ऊँट, जिराफ और मछली के बच्चे फेल हो गए। केवल बंदर का बच्चा टॉपर बना।
इस मौके पर एक बड़ा समारोह आयोजित किया गया। बंदर के बच्चे को मंच पर बुलाकर मेडल पहनाया गया।
फेल हुए जानवरों के माता-पिता का गुस्सा चरम पर था।
- हाथी ने अपने बच्चे को डाँटा, "इतना बड़ा शरीर और पेड़ पर चढ़ना नहीं सीखा?"
- मछली की माँ ने कहा, "इतना अच्छा स्कूल था। तुमसे कुछ नहीं हुआ।"
- ऊँट और जिराफ ने भी अपने बच्चों को खूब डाँटा।
शिक्षा का सही अर्थ क्या है?
रास्ते में इन निराश माता-पिता की मुलाकात एक बुजुर्ग लोमड़ी से हुई। लोमड़ी ने उनकी समस्याएँ सुनीं और जोर से हँसते हुए बोली:
"आप लोग अपनी विशेषता को भूल रहे हैं। हाथी को पेड़ पर चढ़ने की जरूरत ही क्या है? अपनी सूंड उठाओ और सबसे बड़ा फल तोड़ लो।"
"ऊँट और जिराफ, तुम तो अपनी गर्दन बढ़ाकर पेड़ों से पत्तियाँ खा सकते हो। पेड़ पर चढ़ने की जरूरत क्यों?"
"मछली, तुम्हारे बच्चे को नदी में तैरने दो। वह एक दिन महासागर पार करेगा और पूरी दुनिया में नाम कमाएगा। उसे पेड़ पर चढ़ने की क्या जरूरत?"
प्राकृतिक क्षमता की अहमियत
लोमड़ी ने समझाया, "हर बच्चे की अपनी प्राकृतिक क्षमता होती है। हमें उन्हें उनके अनुसार बढ़ावा देना चाहिए, न कि उनकी तुलना दूसरों से करनी चाहिए।"
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि:
- हर बच्चा खास होता है।
- शिक्षा का उद्देश्य बच्चों की ताकत को पहचानकर उसे निखारना होना चाहिए।
- सबको एक जैसा बनाना शिक्षा का सही अर्थ नहीं है।
हमारी शिक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत
आज की शिक्षा प्रणाली को समझने और सुधारने की जरूरत है।
- क्या हर बच्चे से एक जैसे प्रदर्शन की उम्मीद करना सही है?
- क्यों न बच्चों को उनकी रुचि और क्षमता के अनुसार पढ़ाई का विकल्प दिया जाए?
- क्यों न बंदरों को पेड़ों पर चढ़ना सिखाया जाए और मछलियों को बेहतर तैराक बनाया जाए?
माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका
माता-पिता और शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की क्षमता को पहचानें और उन्हें उसी दिशा में प्रोत्साहित करें।
- बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार सीखने का अवसर दें।
- उनकी तुलना दूसरों से न करें।
- उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा दें।
निष्कर्ष
"शिक्षा आपके बच्चे के लिए है, न कि बच्चे शिक्षा के लिए।" यह बात हमें हमेशा याद रखनी चाहिए। हर बच्चा खास है और उसके अंदर कुछ अद्वितीय प्रतिभा है। हमें बस उसे पहचानकर सही दिशा में मार्गदर्शन देना है।
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