क्या आप जानते हैं? भारत के इस महान पहलवान की कहानी आपको चौंका देगी!
जानिए भारत के महान पहलवान 'भिम भवानी' भबेंद्र मोहन साहा की प्रेरणादायक कहानी, जिन्होंने अपनी कमजोरियों को ताकत में बदलकर इतिहास रच दिया।

भबेंद्र मोहन साहा: एक कमजोर बालक से 'भिम भवानी' बनने की अद्भुत कहानी!
क्या सच में भारत में एक ऐसा पहलवान था जिसने हाथी तक उठा लिया था?
इतिहास के पन्नों में कई ऐसे योद्धाओं की कहानियाँ दर्ज हैं, जिन्होंने अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत से खुद को एक नया आयाम दिया। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने बचपन में कमजोरी और बीमारी से जूझा, वह इतना ताकतवर बन गया कि उसने हाथियों और चलती गाड़ियों को भी रोक दिया? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं बंगाल के महान पहलवान भबेंद्र मोहन साहा की, जिन्हें बाद में 'भिम भवानी' के नाम से जाना गया।
कमजोरी से ताकतवर बनने की प्रेरणादायक यात्रा
सन 1890 में जन्मे भबेंद्र मोहन साहा बचपन में बहुत कमजोर थे। उन्हें बार-बार मलेरिया होता था और उनके शरीर में शक्ति नहीं थी। लेकिन उनकी जिंदगी तब बदल गई जब एक दिन उनके ही इलाके के एक लड़के ने उन्हें बेदर्दी से पीट दिया। भबेंद्र मोहन उस समय खुद को बचाने में असमर्थ थे। यह घटना उनके जीवन की सबसे बड़ी सीख बनी।
उन्होंने ठान लिया कि अब वे कभी भी अपनी कमजोरी के कारण किसी के आगे नहीं झुकेंगे। इसी संकल्प के साथ उन्होंने एक अखाड़े में दाखिला लिया और कड़ी मेहनत शुरू कर दी।
महान पहलवान बनने की ओर पहला कदम
भबेंद्र मोहन ने कुस्ती की प्रारंभिक शिक्षा प्रसिद्ध प्रशिक्षक अतीन्द्रकृष्ण बसु से ली, जिन्हें खुड़ी बाबू के नाम से जाना जाता था। वे दिन-रात कड़ी मेहनत करने लगे और जल्द ही कुश्ती के हर दांव-पेंच में माहिर हो गए।
एक दिन उन्होंने भारतीय बॉडीबिल्डिंग और कुश्ती के महानायक कोड़ी राममूर्ति नायडू का एक शो देखा। उन्हें 'कलियुग भीम' और 'भारतीय हरक्यूलिस' कहा जाता था। भबेंद्र मोहन उनके कारनामों से इतने प्रभावित हुए कि वे उनके जैसा बनने का सपना देखने लगे।
सर्कस में मिला नया मुकाम
भबेंद्र मोहन की कड़ी मेहनत रंग लाई और कोड़ी राममूर्ति नायडू ने खुद उन्हें अपनी टीम में शामिल करने का प्रस्ताव दिया। लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण वे सीधे सर्कस से नहीं जुड़ पाए।
कुछ समय बाद, जब उनका परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा था, तो उन्होंने एक रात घर छोड़कर सर्कस में जाने का निर्णय लिया। वहाँ उन्होंने नायडू के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग ली और जल्द ही असाधारण शारीरिक प्रदर्शन करने लगे।
भबेंद्र मोहन के अद्भुत कारनामे
चलती हुई गाड़ियों को रोका
उन्होंने अपनी ताकत से दो चलती हुई गाड़ियों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर रोक दिया। इस कारनामे को देखकर जापान के राजा (मिकाडो) ने उन्हें 750 रुपये और एक सम्मानित पदक दिया।
3 गाड़ियों को रोका, जिनमें महाराजा खुद बैठे थे!
राजस्थान के भरतपुर महाराजा के अनुरोध पर उन्होंने तीन गाड़ियों को अपने हाथ और कमर की मदद से रोक दिया, जिनमें खुद महाराजा, ब्रिटिश रेसिडेंट और प्रधानमंत्री बैठे थे। इस अद्भुत कारनामे के लिए उन्हें 1,000 रुपये का इनाम मिला।
हाथी को उठा लिया!
मुरशिदाबाद के राजा के दरबार में, उन्होंने अपने सीने पर एक हाथी को खड़ा कर दिया! यह नजारा देखकर वहाँ मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए।
'भिम भवानी' की उपाधि और दुखद अंत
उनके असाधारण प्रदर्शन के कारण उन्हें 'भिम भवानी' की उपाधि दी गई। लेकिन महज 33 साल की उम्र में 1922 में निमोनिया के कारण उनका निधन हो गया।
इतिहास में खोया लेकिन प्रेरणा बना नाम
भले ही आज भबेंद्र मोहन साहा का नाम इतिहास के पन्नों में धुंधला पड़ गया हो, लेकिन उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर संकल्प मजबूत हो, तो कोई भी कमजोरी आपको रोक नहीं सकती।
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